भगवान शिव को भक्त उत्तर में कैलाश से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक एक समान भाव से पूजते हैं. समाज के भद्रलोक से लेकर शोषित, वंचित, दीन हीन तक उन्हें अपना मानते हैं. वे सर्वहारा के देवता हैं. शिव का व्यक्तित्व विशाल है. वे काल से परे महाकाल है. सर्वव्यापी हैं, सर्व ग्राही हैं. सिर्फ भक्तों के नहीं देवताओं के भी संकटमोचक हैं. इसलिए शिव की पूजा भक्त पुरे साल करते हैं. खासकर हर सप्ताह के सोमवार और हर महीने पड़नेवाली शिवरात्रि एवं प्रदोष तिथि को भगवान् शिव की पूजा की परंपरा है लेकिन, फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि का पर्व बुधवार, 26 फरवरी 2025 को है. शिवभक्तों के लिए यह त्योहार बहुत महत्व रखता है. क्योंकि यह स्वयं भगवान् शिव को बेहद प्रिय है. इस दिन शिव का शक्ति से मिलन यानी विवाह हुआ था. इसलिए महाशिवरात्रि पर मंदिरों और शिवालयों में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
ब्रह्मा ने दिया रुद्र नाम
हमारे शास्त्रों में भगवान शिव को संहारक का दर्जा मिला हुआ है. अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव के जन्म और उनके माता-पिता के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं. शिव पुराण के मुताबिक भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है यानि इनकी उत्पत्ति स्वंय हुई हैं. भोलेनाथ जन्म और मृत्यु से परे हैं. विष्णु पुराण में भगवान शिव के जन्म के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार ब्रह्रमा जी को एक बच्चे की जरुरत थी तब उन्होंने इसके लिए तपस्या की. तभी अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए. ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है. तब ब्रह्मा ने शिव का नाम रूद्र रखा जिसका अर्थ होता है रोने वाला.
विष्णु पुराण में है यह पौराणिक कथा
शिव के ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णु पुराण में एक पौराणिक कथा है. इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सिवा कोई भी देव या प्राणी नहीं था. तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे नजर आ रहे थे. तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए. जब ये दोनो देव सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे तो शिव जी प्रकट हुए. ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई. ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा. शिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया.