26 फरवरी, 2025 (बुधवार) को महाशिवरात्रि का पवित्र त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन शिव और देवी मां पार्वती का शुभ विवाह संपन्न हुआ था. इसलिए महाशिवरात्रि भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इस दिन शिव-पार्वती की पूजा का विधान से करने का प्रावधान है.
शास्त्रों के मुताबिक भोलेनाथ को संहारक का दर्जा प्राप्त हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी मां पार्वती ने कठोर तपस्या की थी. ऐसा माना जाता है कि जिस स्थान पर देवी मां ने तपस्या की थी उस गौरी कुंड की खासियत यह है कि यहां का पानी सर्दी में भी गर्म ही रहता है. तपस्या पूरी होने के बाद गुप्तकाशी में देवी मां पार्वती ने शिव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था. शिव ने जब विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया तब देवी मां पार्वती के पिता हिमालय ने विवाह की तैयारियां शुरु कर दी और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में इनका विवाह संपन्न हुआ.
रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगी नारायण गांव में शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह हुआ था. इस गांव में श्री विष्णु और देवी मां लक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है, जिसे शिव पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता हैं. इस मंदिर के प्रांगण में कई सारी चीजें हैं, जिनके बारे में बताया जाता है कि यह शिव-पार्वती के विवाह के प्रतीक हैं. इनमें एक है ब्रह्मकुंड. बताया जाता है शिव-पार्वती के विवाह में ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे. विवाह में शामिल होने पहले ब्रह्मा जी ने जिस कुंड में स्नान किया था वह ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता हैं. तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने देवी पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी. श्री विष्णु ने विवाह की सभी रीतियों को निभाया था.