महंगाई से घटी लकड़ियों की खपत
रीडिवेलपमेंट प्रोजेक्टों के कारण खत्म हुई रौनक
मुंबई. महंगाई और पर्यावरण में फैलनेवाले प्रदूषण की दुहाई ने होली में जलनेवाली सम्मत की आंच को भले ही मद्धम (हल्का) कर दिया है. लेकिन बांद्रा-पूर्व खेरवाडी में एक परिवार पिछले लगभग 111 वर्षों से मुंबई में इस त्यौहार की परंपरा को जिंदा रखने में अहम् भूमिका निभा रहा है. इस परिवार के लोगों के कारण महंगाई और तमाम दूसरी अड़चनों के बावजूद इस बस्ती में निरंतर होती पर लकडियों का बाजार सज रहा है. इस बाजार से बांद्रा पूर्व के लोग ही नहीं बल्कि माहिम, थारावी, कलीना, अंधेरी- पूर्व/पश्चिम तक के लोग होली के लिए लकडियां और गोबर के गोइंठे, उप्लियां खरीदने पहुंचते हैं.
लकड़ी की दुकान लगानेवाले छगनलाल बागड़ी ने बताया कि उनके समाज के लोग वर्ष 1994 मे राजस्थान और हरियाणा के अलग-अलग जिलो से रोजगार की तलाश में मुंबई आए थे. उन्हीं लोगों में उनके दादाजी डूंगाराम बागडी भी शामिल थे. उसी समय से डूंगाराम ने होली के समय यहां लकड़े, उपलियां आदि बेचने के लिए बाजार लगाना l शुरू किया था. डूंगाराम के बाद उनके वंशज हरिचंद्र बागडी और अब उनका परिवार अर्थात वे (छगनलाल बागडी), विजय बागडी तथा किशन बागडी अपने परिवार के साथ हर साल होली पर इस त्योहार को जीवित रखने की कोशिश करते हैं.
घट रही है लकड़ियों की मांग
मुंबई में जोर शोर से चल रहे एसआरए और दूसरे रिडेवलपमेंट प्रोजेक्टों के कारण त्योहारों में दिलचस्पी रखने वाला माध्यम वर्ग अब मुंबई से बाहर निकलता जा रहा है. उस पर महंगी हुई लकड़ियों तथा वायु प्रदूषण रोकने के लिए लोग औपचारिक रूप से होली दहन करते हैं तो वहीं पानी की बचत के लिए रंगोत्सव मनाते हैं. नए-नए नियमों एवं पाबंदियों के कारण भी लोग होली के त्योहार से दूर हो रहे हैं.
