आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने उठाया पारदर्शिता पर सवाल
देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय स्टेट बँक (एसबीआई) की सीएसआर शाखा एसबीआई फाउंडेशन ने खुद को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर बताते हुए एनजीओ को दिए गए फंड और ऑडिट रिपोर्ट साझा करने से इनकार कर दिया है.
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एसबीआई फाउंडेशन से जानकारी मांगी थी कि एसबीआई फाउंडेशन द्वारा एसीई स्पोर्ट्स डेवलेपमेंट प्रोग्राम के तहत किन एनजीओ को वित्तीय सहायता दी गई? क्या इनमें से कोई एनजीओ ओलिंपियन द्वारा संचालित है? किन एनजीओ का सीएजी (महालेखा परीक्षक) द्वारा ऑडिट हुआ है? रिपोर्ट की प्रति मांगी गई थी. क्या किसी एनजीओ को ब्लैकलिस्ट किया गया है? फंड नवीनीकरण की प्रक्रिया, निर्णय समिति की जानकारी, और यदि सेलिब्रिटी संस्थाओं को छूट दी गई हो तो उसका आधार क्या है? क्या परियोजना नवीनीकरण के पहले अनिवार्य ऑडिट की नीति है? इसके जवाब में SBI फाउंडेशन के निदेशक की ओर से कहा गया कि “एसबीआई फाउंडेशन आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(एच) के अनुसार ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है.” और इसलिए वह RTI के तहत जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है.
इस जवाब पर अनिल गलगली ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “SBI एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है और एसबीआई फाउंडेशन उसकी सीएसआर इकाई है, जिसे सार्वजनिक धन से ही फंडिंग मिलती है। ऐसी संस्था अगर आरटीआई के दायरे से बचने की कोशिश करती है तो यह पारदर्शिता से बचने और जवाबदेही से भागने की कोशिश है.” गलगली ने कहा कि वह इस मामले को एसबीआई के आरटीआई नोडल अधिकारी, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) तथा सीएसआर निगरानी संस्थाओं तक ले जाएंगे. उन्होंने कहा कि “जब सरकारी पैसे से फंड दिए जाते हैं, तब हर नागरिक को यह जानने का हक है कि पैसा किन्हें दिया गया, किस आधार पर दिया गया और उसमें कहीं गड़बड़ी तो नहीं हुई.” यह मामला देशभर की उन संस्थाओं के लिए नजीर बनेगा, जो सरकारी फंड लेकर भी आरटीआई से बचने की कोशिश करती हैं.