मुंबई. एसआरए स्कीम के तहत मिले मकान बेचने वालों को बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि एसआरए योजना के तहत मिले मकान झोपड़ा धारक 5 साल के बाद ही बेच सकेंगे. इसी के साथ साथ बड़ी संख्या में एसआरए के मकान बेचे जाने के लिए कोर्ट ने अधिकारियों को भी जमकर फटकार लगाई है.
कोर्ट ने कहा है कि यदि यदि एसआरए के तहत दिए गए मकान 5 साल से पहले बेचे जाते हैं तो उन मकानों में रहनेवाले घुसपैठियों को तुरंत बेदखल करें और मकानों को अपने कब्जे में ले कर अन्य परियोजना प्रभावितों को दे दें. कोर्ट ने कहा है कि कानून का उल्लंघन करने वाले एसआरए के मकानों पर से अधिकार अपना अधिकार खो देंगे. ऐसे लाभार्थियों के घरों पर कब्जा करने के बाद इस दुष्प्रवृति पर रोक लगेगी.
दरअसल, उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बांद्रा पूर्व स्थित निर्मल नगर में एसआरए के मकान पात्र झोपड़ा धारकों को नहीं दिए गए. विशेष रूप से, 7 जनवरी 2025 को ओ.सी. मिलने के बाद महज 8 महीनों में 803 लाभार्थी झोपड़ाधारकों की सोसाइटी में से 410 लाभार्थियों ने अपने घर बेच दिए. अदालत ने इस तथ्य पर नाराजगी व्यक्त की कि 50 प्रतिशत घर बेच दिए गए हैं. एस.आर.ए. अधिकारियों को मामले की जांच का आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि यह मामला सर बांद्रा की एक परियोजना तक ही सीमित नहीं है. बल्कि मुंबई और मुंबई उपनगर में 2260 एस. आर. ए. परियोजनाएं चल रही हैं. और यदि एक परियोजना में एक परियोजना में 50 प्रतिशत लाभार्थियों ने अपने घर बेच दिए होंगे तो पूरी मुंबई के लिहाज से मामला बेहद गंभीर हो जाता है.
2020 में बदला गया था नियम
एस.आर.ए. के मूल कानून के अनुसार, लाभार्थी योजना के तहत मिले घर 10 साल तक बेच नहीं सकते थे. लेकिन 2020 में एनसीपी नेता और राज्य के तत्कालीन आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने कानून को बदलकर 5 साल कर दिया. बाद में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने नियम को और शिथिल करते हुए 3 में मकान बेचने की अनुमति दे दी.
झोपड़पट्टी मुक्त मुंबई की संकल्पना को हो रहा नुकसान
एसआरए स्कीम मुंबई को झोपड़ा मुक्त बनाने के मकसद से शुरू की गई थी. लेकिन ऐसा देखा गया है कि एसआरए और विभिन्न पीएपी परियोजनाओं के प्रभावित लाभार्थी अपने मकानों को बेच देते हैं और फिर किसी अन्य झुग्गी बस्ती में सस्ता मकान खरीद कर नए सिरे से पुनर्वास परियोजना का इंतजार करने लगते हैं. बांद्रा सहित मुंबई की ऐसी तमाम एसआरए और पीएपी परियोजनाओं की ईमानदारी से जांच की जाए तो लाखों की संख्या में झोपड़पट्टी माफिया सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे. ऐसे लाभार्थियों के कारण मुंबई को झुग्गी मुक्त करने की संकल्पना सफल नहीं हो पा रही है. जानकारों का दावा है कि कोर्ट के इस आदेश के बाद एसआरए के मकान की खरीद विक्री पर कुछ हद तक तो रोक अवश्य लगेगी लगेगी. क्योंकि पहले की तरह लोग अब पावर ऑफ अटॉर्नी की मदद से भी मकान नहीं बेच पाएंगे. लेकिन इससे भ्रष्टाचार भी बढ़ सकता है.
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