मुंबई. नागपुर सेंट्रल जेल में बंद कुख्यात गैंगस्टर अरुण गवली को गुरुवार को कोर्ट से जमानत मिल गई. शिवसेना से तीन बार नगरसेवक रहे कमलाकर जामसंडेकर मर्डर केस सहित करीब 50 गंभीर मामलों में आरोपी रहे गवली को स्पेशल मकोका कोर्ट ने वर्ष 2012 में उम्र कैद की सजा सुनाई थी. वर्ष 2019 में उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखने का निर्णय सुनाया था. उच्च न्यायालय के फैसले को गवली के वकीलों ने चुनौती दी थी. याचिका पर सुनवाई करने के दौरान गवली की 76 साल की उम्र, उनका खराब स्वास्थ्य और जेल में अब तक बिताए गए 17 वर्ष 3 महीनों के लंबे कारावास की कालावधि को देखते हुए कोर्ट ने जमानत देने का निर्णय लिया है.
क्या है गवली की कहानी?
बताया जाता है कि कभी दूध विक्रेता रहे अरुण गवली ने वर्ष 1970 के दशक में जरायम की दुनिया में पहली बार कदम रख था. बाद में वह क्षेत्र के कुख्यात गैंगस्टर रामा नाईक और बाबू रेशिम की भायखला कंपनी से जुड़ गए. 1988 में पुलिस इनकाउंटर में रामा नाईक की मौत के बाद भायखला कंपनी की कमान गवली के हाथ में आ गई थी. मुंबई, ठाणे और कल्याण क्षेत्रों में 49 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें मकोका अधिनियम के तहत कई मामले शामिल हैं. उस दौर में मुंबई में कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर की ‘डी’ कंपनी की तूती बोलती थी. गवली ‘गैंग’ ने मुंबई में दाऊद के वर्चस्व को चुनौती देने का काम किया. जबरन वसूली, अपहरण, संपत्ति की पर जबरन कब्जा, हत्या के प्रयास और हत्या जैसे दर्जनों मामलों में संलिप्तता के आरोप गवली गैंग पर लगे.
राजनीति में रखा कदम
मुंबई के भायखला क्षेत्र अंतर्गत आने वाली दगडी चाल स्थित अपने घर से गैंग का संचालन करने वाले अरुण गवली, देखते ही देखते मुंबई के हिंदू डॉन के रूप में मुंबई में अपना प्रभाव बढ़ाने लगे. दक्षिण मुंबई के लालबाग, परेल, भायखला, करी रोड, दगड़ी चॉल, सात रास्ता और मझगांव इलाके में गवली का अच्छा प्रभाव था. इसी प्रभाव के बल पर गवली बाद में राजनीति में आ गए थे. उन्होंने अखिल भारतीय सेना नामक राजनैतिक पार्टी बनाई थी. उन्होंने दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा सीट से शिवसेना के तत्कालीन सांसद मोहन रावले के खिलाफ 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा और 92,000 वोट हासिल किए. बाद में हुए 2004 विधानसभा चुनाव में गवली चिंचपोकली विधानसभा क्षेत्र से फिर मैदान में उतरे और जीत हासिल करके विधायक बने. वह 2009 तक विधायक रहे थे.
क्या है कमलाकर जामसंडेकर मर्डर केस?
घाटकोपर-पश्चिम स्थित साकीनाका क्षेत्र के निवासी कमलाकर जामसंडेकर, शिवसेना से तीन बार नगरसेवक चुने गए थे. 2007 में हुए मुंबई महानगर पालिका के चुनाव में उन्होंने गवली की पार्टी ‘अखिल भारतीय सेना’ (एबीपी) के उम्मीदवार अजीत राणे को 367 वोटों से हराया था. साकीनाका के एक भूखंड को लेकर हुए विवाद में गवली के शूटरों ने 2 मार्च 2007 को जामसंडेकर की उन्हीं के घर में गोली मारकर हत्या कर दी थी.
ऐसे दिया था वारदात को अंजाम
गवली गैंग से जुड़े सदाशिव सुर्वे नामक व्यक्ति के साथ एक भूखंड के विकास को लेकर जामसंडेकर का विवाद चल रहा था. सुर्वे ने गवली गिरोह के जरिए जामसंडेकर की ‘सुपारी’ दी थी. गवली ने यह जिम्मेदारी प्रताप गोडसे को सौंपी थी. तब तक विधायक बन चुके गवली ने पूरा प्रयास किया था कि उनका नाम इस मामले में न आए. गवली गैंग के गोडसे ने पूरा ऐहतियात बरतते हुए श्रीकृष्ण गुरव नामक अपराधी के माध्यम से नरेंद्र गिरि और विजय कुमार गिरि नामक शूटरों को 5 लाख रुपए जामसंडेकर के मर्डर की सुपारी दी थी. वारदात को अंजाम देने के लिए शूटरों को 20-20 हजार रुपए टोकन (अग्रिम भुगतान) दिए गए थे. शूटरों ने वारदात को अंजाम देने से पहले करीब 15 दिनों तक जामसंडेकर की दिनचर्या का अध्ययन किया और सही मौके की तलाश करते रहे. 2 मार्च 2007 को जामसंडेकर, साकीनाका की रूमानी मंजिल चाल स्थित अपने घर में बैठे टीवी देख रहे थे. तभी हमलावरों ने घर में घुसकर उन्हें गोली मार दी थी. इस मामले की जांच के उपरांत साकीनाका पुलिस ने अरुण गवली सहित कुल 11 लोगों को आरोपी बनाया था. पुलिस ने वर्ष 2008 में गवली को गिरफ्तार किया था. मकोका कोर्ट ने गवली सहित 6 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद और 12 लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई थी. इस मामले की अगली सुनवाई फरवरी 2026 में होनी है.