कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा की जाती है. इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, जो कि दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है. यह पर्व भगवान कृष्ण की उस लीला को समर्पित है, जब उन्होंने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र का अहंकार तोड़ा था. इसलिए इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक आकृति बनाकर उनकी पूजा करने का विधान है. इस साल यह पर्व 22 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी विधि-पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है. गोवर्धन पूजा का त्योहार मुख्य रूप से वृंदावन, मथुरा, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा की कथा
विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत में गोवर्धन पूजा का विस्तृत वर्णन मिलता है. इस दिन का पौराणिक महत्व भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत लीला से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि जब देवराज इंद्र को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने उनके अहंकार को तोड़ने के लिए यह दिव्य लीला रची थी.
कथा के अनुसार, एक बार सारे गोकुलवासी बड़े उत्साह के साथ तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और आनंदपूर्वक गीत गा रहे थे. श्रीकृष्ण ने यह देखकर यशोदा मैय्या से पूछा कि वे सब किस पर्व की तैयारी कर रहे हैं. तब माता यशोदा ने बताया कि वो सब देवराज इंद्र की पूजा करने जा रहे हैं. तब कृष्ण ने पलटकर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? इस पर माता यशोदा ने कहा कि इंद्र देव की कृपा से वर्षा होती है, जिससे खेतों में फसल उगती है और हमारी गायों को भरपूर चारा मिलता है. यह सुनकर श्रीकृष्ण ने तर्क देते हुए कहा कि इसके लिए तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वही हमारी गायों को आश्रय और भोजन देते हैं. तब कृष्ण की बात सुनकर सभी गोकुलवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. यह देखकर इंद्र अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने प्रचंड वर्षा आरंभ कर दी. मूसलाधार बारिश से गोकुल डूबने लगा. तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ग्रामवासियों को उसके नीचे आश्रय दिया. सात दिनों तक लगातार वर्षा होती रही और भगवान कृष्ण यूं ही कनिष्ठा उंगली पर पर्वत को संभाले खड़े रहे. जब इंद्र को एहसास हुआ कि वे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण से संघर्ष कर रहे हैं, तो उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगकर उनकी आराधना की. तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा आरंभ हुई.
कहते हैं कि इस दिन गाय-बैलों को स्नान कराकर उन्हें चंदन, फूल और माला से सजाया जाता है. गायों को भोजन और हरा चारा खिलाया जाता है. उनकी आरती उतारी जाती है. ऐसा विश्वास है कि गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व के आयोजन से दीर्घायु, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है और दरिद्रता दूर होती है.
ये है शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि शुरू – 21 अक्टूबर शाम 5:54 मिनट पर.
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 अक्टूबर रात 8:16 मिनट पर.
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी. गोवर्धन पूजा के लिए 22 अक्टूबर को दो शुभ मुहूर्त मिलेंगे जो कि नीचे दिए गए है: सुबह 6:26 बजे से लेकर सुबह 8:42 बजे तक.
दोपहर 3:29 मिनट से लेकर शाम 5:44 बजे तक.
अन्नकूट प्रसाद
अन्नकूट प्रसाद गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव का अहम हिस्सा होता है, जो दिवाली के बाद मनाया जाता है. अन्नकूट में भगवान श्रीकृष्ण को कई तरह के व्यंजन, विशेष रूप से सब्जियों से बने पकवानों का भोग लगाया जाता है. इस प्रसाद को ‘अन्न का पर्वत’ या ‘भोजन का पहाड़’ भी कहते हैं, जो ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और प्रचुरता का प्रतीक माना जाता है.
गोवर्धन पूजा की सामग्री : गोवर्धन पूजा के लिए गाय का गोबर, रोली, अन्नकूट का प्रसाद, अक्षत, फूल, धूप-दीप, बताशे, कलश, दही, शहद, गंगाजल, फूल माला, खीर, मिठाई और भगवान कृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा जैसी सामग्री चाहिए. पूजा में गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाने और उसे सजाने के लिए ये सामग्रियां इस्तेमाल होती हैं. इसके अलावा, गोवर्धन पूजा में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा या चित्र, कलश, पंचामृत, और 56 प्रकार के भोग भी शामिल किए जाते हैं.
गोवर्धन पूजा मंत्र
गोवर्धन पूजा के लिए मुख्य रूप से इन मंत्रों का जाप करना चाहिए. इन मंत्रों का जप करके भक्त भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं.
“गोवर्धन धराधर गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।”
“श्री गिरिराज जी शरणं ममः, श्री नाथ जी शरणं ममः।”
“गोवर्धनेश्वराय विद्महे धेनु कोटि प्रचोदयात तन्नो गोवर्धन प्रचोदयात”
पूजा विधि : गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और उसके ऊपर भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
फिर पर्वत की नाभि पर एक कटोरी जितना गड्ढा बनाकर उसमें एक कटोरी या दीपक रखें.
गोवर्धन पूजा के लिए सबसे पहले पवित्रीकरण करना चाहिए.
फिर भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: मंत्र का जाप करें.
“गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव॥”
मुख्य मंत्र का जाप 108 बार करें.
गोवर्धन पर्वत के सामने दीपक जलाएं और दूध, दही, शहद, बताशे, पेड़ा और लड्डू आदि का भोग लगाएं.
पूजा करने के बाद गोवर्धन जी की आरती करें.
गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करें.
गोवर्धन जी की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन जी की परिक्रमा 7 या 11 बार करनी चाहिए, खासकर गोवर्धन पूजा के दिन. यह परिक्रमा पूरे परिवार के साथ मिलकर करना शुभ माना जाता है और इससे घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.
गोवर्धन परिक्रमा मंत्र क्या है?
गोवर्धन पूजा के दौरान गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय – गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक, विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।। मंत्र का जाप करना चाहिए.
गोवर्धन पूजा के दिन क्या करें?
घर के आंगन या मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं.
पर्वत के मध्य में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
भक्ति भाव से 56 भोग या अन्नकूट तैयार करें और गोवर्धन महाराज को अर्पित करें.
गौमाता की पूजा करें उन्हें स्नान कराएं, तिलक लगाएं, फूल-माला पहनाएं और हरा चारा खिलाएं.
दिनभर केवल सात्विक भोजन करें.
शाम को भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में दर्शन अवश्य करें.
पूजा और शुभ कार्यों में लाल, पीले या नारंगी रंग के वस्त्र पहनें ये मंगल और भक्ति के प्रतीक हैं.
गोवर्धन पूजा के दिन क्या नहीं करें?
गोवर्धन पूजा के दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें.
पूजा के समय काले या नीले वस्त्र न पहनें.
घर का मुख्य द्वार या खिड़कियां बंद न रखें, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे.
मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन न करें.
किसी भी पेड़-पौधे को न काटें, क्योंकि यह दिन प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक है.
(डिस्लेमर : इस आलेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और प्रचलित कथाओं पर आधारित है. ‘तह की बात’ इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है. कोई भी प्रयोग स्वविवेक और अपने जोखिम के आधार पर करें.)