मुंबई. बलात्कार के प्रयास के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्रा का एक विवादित फैसला शुक्रवार को चर्चा का विषय बन गया. न्यायाधीश ने पीड़िता को जबरन पकड़ने, उसके पजामे का कमरबंद (नाडा) खींचने तथा उसे पुल के नीचे खींचने की कोशिश को बलात्कार का प्रयास मानने से इनकार कर दिया. महाराष्ट्र विधान परिषद की उपसभापति डॉ. नीलम गोर्हे ने इस पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल से अनुरोध किया है कि वे उक्त विवादास्पद फैसले को व्यक्तिगत रूप से संज्ञान में लें. अदालत द्वारा मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 511 और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के साथ धारा 376 के तहत आरोप तय न करने के फैसले, तथा 354 (बी) जैसी आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की मामूली धाराओं के तहत अपराध दर्ज करने के निर्णय पर हैरानी जताते हुए गोर्हे ने कड़ा रुख अपनाने की मांग सर्वोच्च न्यायालय से की है.
विधान परिषद के उपसभापति डॉ. गोर्हे ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से लिखित अनुरोध किया है उन्होंने महिला सुरक्षा पर इस फैसले के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की है और मांग की है कि सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यौन अपराधों के खिलाफ सख्त कानूनों की मंशा न्यायिक निर्णयों में परिलक्षित हो. डॉ. गोर्हे ने कहा कि इस फैसले से यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा प्रभावित होगी और उनमें कानून का डर नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस पर स्वयं संज्ञान लेना चाहिए और उचित निर्णय लेना चाहिए. इससे न्यायपालिका की जिम्मेदारी स्पष्ट होती है और यदि सर्वोच्च न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करता है तो न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास मजबूत होगा तथा यौन अपराध करने वालों को उचित सजा मिलेगी.

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