मुंबई। न्याय, समाज का वह स्तंभ है, जिस पर हर व्यक्ति की उम्मीदें टिकी होती हैं। यह केवल अदालतों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे दैनिक जीवन, सोच और कार्यों में भी इसका महत्व है। एक सभ्य समाज में न्याय का उद्देश्य केवल अपराधियों को दंडित करना नहीं, बल्कि पीड़ितों को उनके अधिकार दिलाना और समाज में संतुलन बनाए रखना भी है।
हमारे देश में “न्याय” शब्द केवल कानूनी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है। यह हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी अहम भूमिका निभाता है। किसी गरीब को उसका हक दिलाना, किसी महिला को समानता का अधिकार देना, और समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में शामिल करना – यह सब न्याय के दायरे में आते हैं।
आज के दौर में, जहां समाज तेजी से बदल रहा है, न्याय की परिभाषा भी व्यापक हो गई है। डिजिटल युग में साइबर अपराध, पर्यावरणीय असंतुलन, और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दे उभर कर सामने आ रहे हैं। ऐसे में न्याय व्यवस्था को भी बदलते समय के साथ खुद को अपडेट करना होगा।


एक सशक्त और जागरूक समाज ही न्याय को साकार कर सकता है। इसके लिए हमें खुद से शुरुआत करनी होगी – अपने भीतर की असमानता, भेदभाव और अन्याय को दूर करके। जब हर नागरिक न्याय के प्रति समर्पित होगा, तभी एक सशक्त और संतुलित समाज का निर्माण होगा।
“न्याय हर इंसान का अधिकार है। इसे हर हाल में सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है।”

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