आरटीआई में हुआ खुलासा

मुंबई. महाराष्ट्र में 2019 से प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जे.ए.वाई) और महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना (एमजेपी-जे.ए.वाई) के तहत लोगों को 5 लाख रुपए तक इलाज मुफ्त उपलब्ध कराने का दावा केंद्र और राज्य की सरकारें करती रही हैं लेकिन अस्पतालों के असहयोग की वजह से ये योजनाएं सफेद हाथी साबित हो रही हैं. पिछले 7 वर्षों में पीएम-जे.ए.वाई और एमजेपी-जे.ए.वाई के तहत मदद मांगने वाले 870 से अधिक मरीजों का अस्पतालों ने इलाज से इनकार कर दिया. ऐसा सनसनीखेज खुलासा एक्टिविस्ट जितेंद्र घाडगे को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से हुआ है.
राज्य स्वास्थ्य गारंटी सोसायटी ने यंग व्हिसलब्लोअर फाउंडेशन के एक्टिविस्ट जितेंद्र घाडगे को महाराष्ट्र सरकार के एकीकृत आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और महात्मा ज्योतिराव फुले जन आरोग्य योजना के बारे में आर टी आई के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में बताया है कि 2019 से 29 मई 2025 तक, महाराष्ट्र की स्टेट हेल्थ एश्योरेंस सोसाइटी से केंद्र सरकार की ‘आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ और राज्य सरकार की ‘महात्मा ज्योतिबा फुले-जन आरोग्य योजना’ के तहत इलाज में मदद मांगने वाले 871 मरीजों ने फाइल अस्वीकार होने या फिर अस्पतालों में इलाज नहीं किए जाने की शिकायत की है. इनमें से 347 शिकायतें धर्मार्थ अस्पतालों के खिलाफ और 524 शिकायतें निजी अस्पतालों के खिलाफ दर्ज की गईं.

अस्पताल-वार आंकड़े:
धर्मार्थ अस्पतालों में सबसे ज्यादा 67 शिकायतें भारती विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (सांगली) के खिलाफ आईं.
निजी अस्पतालों में, सेवा सदन लाइफ लाइन एंड सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (मिरज) के खिलाफ 27 शिकायतें दर्ज की गईं.
जिलावार आंकड़े:
सांगली जिले से सबसे अधिक 181 शिकायतें आईं.
इसके बाद पुणे से 114, और छत्रपति संभाजी नगर (पूर्व में औरंगाबाद) से 109 शिकायतें मिलीं।
वर्ष वार ट्रेंड:
2021, जो कि कोविड महामारी का वर्ष था, उस साल 517 शिकायतें दर्ज हुईं, जो कि कुल शिकायतों (1,123) का लगभग आधा हिस्सा है.
कार्रवाई की स्थिति:
स्टेट हेल्थ एश्योरेंस सोसाइटी ने नियमों के उल्लंघन पर 545 अस्पतालों की पैनल से सदस्यता रद्द कर दी. हालांकि, आधिकारिक दस्तावेजों में यह स्पष्ट नहीं है कि यह कार्रवाई किस समय अवधि की शिकायतों पर की गई, जिससे यह तय करना मुश्किल है कि 2019 से 2025 के बीच की गई 871 शिकायतों में से कितनी पर वास्तव में कार्रवाई हुई.
अस्पताल करते हैं मनमानी
एक्टिविस्ट जितेंद्र घाडगे (यंग व्हिसलब्लोअर्स फाउंडेशन) के अनुसार, महाराष्ट्र में कुल लगभग 6,500 अस्पताल हैं, लेकिन इनमें से केवल 2,019 अस्पताल ही योजना में शामिल हैं, जो कि केवल 31% है. चिंता की बात यह है कि सरकारी पैनल में शामिल अस्पताल भी इलाज से इनकार कर रहे हैं. इससे यह साफ होता है कि योजना के क्रियान्वयन में गंभीर खामियां हैं. क्योंकि पैनल में शामिल अस्पताल सुविधा देने के नाम पर सरकार से पहले ही सहूलियतें ले लेते हैं लेकिन बाद में इलाज से इनकार करने पर सरकार अस्पतालों को सिर्फ पैनल से बाहर निकालती है, जो कि कोई सजा नहीं बल्कि राहत जैसा ही है. पैनल से निकलने के बाद अस्पताल गरीब मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं.
सभी अस्पतालों में हो इलाज अनिवार्य
घाडगे का कहना है कि अब समय आ गया है, सरकार कानून लाकर इन योजनाओं में सभी अस्पतालों की भागीदारी अनिवार्य करे. साथ ही, जहां भी इलाज से इनकार की पुष्टि होती है, अस्पताल का लाइसेंस निलंबित किया जाना चाहिए. जब तक सख्त नियम और जवाबदेही नहीं होगी, ये योजनाएं अपने असली मकसद को पूरा नहीं कर पाएंगी.

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