मुंबई. महाराष्ट्र में वर्तमान में चल रही हिंदी की अनिवार्यता की चर्चाएं अतार्किक, अनुचित और अवास्तविक हैं. राज्य में केवल मराठी ही अनिवार्य है और पहली से तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया गया है. बल्कि हमारी सरकार ने पांचवीं से आठवीं तक की हिंदी की अनिवार्य को भी हटाकर वैकल्पिक बना दिया है. हम मराठी और छात्रों के हितों के कट्टर समर्थक हैं.
मुंबई भाजपा अध्यक्ष और राज्य सांस्कृतिक मामलों के मंत्री और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री एडवोकेट आशीष शेलार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम हिंदी के मुद्दे पर राज्य में चल रही चर्चाओं का स्वागत करते हैं. कुछ लोग गलतफहमियों की वजह से आलोचना कर रहे हैं, जो कि लोकतंत्र में अभिप्रेत है. तो वहीं कुछ लोग आंदोलन की भूमिका में हैं, यह उनका स्वाभाविक अधिकार है. उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा को लेकर जो गलतफहमियां फैलीं हैं उनकी वजह से जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं, वो अनुचित, अतार्किक और अवास्तविक हैं. इस राज्य में केवल मराठी भाषा अनिवार्य है और किसी अन्य भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है. बल्कि अब तक हिंदी कक्षा 5 से 8 तक अनिवार्य थी और हमारी सरकार ने इसे हटाकर हिंदी भाषा को वैकल्पिक विकल्प के रूप में उपलब्ध कराया है. साथ ही, अब वैकल्पिक भाषा के रूप में केवल हिंदी विकल्प प्रस्तुत किया गया है. जिसमें लचीलापन रखा गया है और कक्षा 1 से 5 तक किस कक्षा में यह भाषा पढ़ाई जानी चाहिए. इसमें 15 भाषाओं की व्यवस्था भी की गई है. इस भाषा को सीखने के दौरान उपलब्ध उपकरणों और सामग्रियों को ध्यान में रखते हुए, छात्रों के सामने हिंदी विकल्प रखा गया है. इसके लिए एक बड़ा अध्ययन भी किया गया है. सरकार ने इसके लिए अधिकारियों का एक अध्ययन समूह नियुक्त किया, जिसके बाद भाषा और शैक्षणिक जगत के 450 विशेषज्ञों ने 1 साल तक इस मामले का अध्ययन किया और इसे तैयार किया. उन्होंने जो मसौदा तैयार किया था, उसे आपत्तियों और सुझावों के लिए जनता के लिए उपलब्ध कराया गया था, जिस पर 3,800 से अधिक आपत्तियां और सुझाव प्राप्त हुए थे. उनका अध्ययन करने के बाद सुकानु समिति ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का विकल्प प्रस्तावित किया गया था. सुकानु समिति की सिफारिश के अनुसार सरकार ने छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में हिंदी उपलब्ध कराई. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी तीसरी भाषा को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, तीसरी भाषा को आवश्यकता के अनुसार तीसरी भाषा के रूप में अनुशंसित किया गया है. यदि भाजपा को हिंदी या तीसरी भाषा अनिवार्य करनी होती, तो वह इस नीति को बनाते समय इस विकल्प को चुनती, इसलिए आज हमारी मंशा पर लगाए जा रहे आरोप अतार्किक हैं, ऐसा भी शेलार ने स्पष्ट किया. आज भी शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूला 1968 में बनाया गया था. उसके बाद 1964 और 1966 में शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में आग्रह किया गया था कि राष्ट्रीय सामाजिक एकीकरण के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखी जानी चाहिए. इसलिए आज जो चर्चा चल रही है, वह अनुचित है, एड. शेलार ने विस्तार से बताया कि अगर आज हम द्विभाषी फॉर्मूले को स्वीकार करते हैं, तो यह छात्रों के हित में नहीं होगा. आज राज्य में महाराष्ट्र बोर्ड के स्कूलों में पहले वर्ष में 9 लाख 68 हजार 776 छात्र पढ़ रहे हैं, और इनमें से 10 प्रतिशत छात्र अन्य भाषा के स्कूलों में पढ़ते हैं. जबकि 10 प्रतिशत छात्र सीबीएसी, आईजीएससी, आईजी, कैम्ब्रिज, आईबी जैसे बोर्ड में पढ़ते हैं. चूंकि वर्ष 2020 में इन 20 प्रतिशत छात्रों के लिए मराठी अनिवार्य कर दी गई थी, इसलिए वे अपनी मूल भाषा के अलावा अंग्रेजी और मराठी जैसी तीन भाषाएं सीखते हैं. इसलिए यदि हम महाराष्ट्र बोर्ड के मराठी माध्यम के छात्रों को केवल दो भाषाएं पढ़ाने का फैसला करते हैं, तो इससे शैक्षणिक असमानता पैदा होगी. क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को अन्य कौशल, कला, भाषा और सीखने पर समय बिताने के लिए अधिक क्रेडिट दिया जाएगा और यह उनके अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट में जोड़ा जाएगा. अगर हम अपने छात्रों को तीसरी भाषा का विकल्प नहीं देते हैं, तो वे क्रेडिट में 10 प्रतिशत पीछे रह जाएंगे. साथ ही, भले ही आज अन्य बोर्ड और राष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रतियोगी परीक्षाएँ 22 भाषाओं में आयोजित की जाती हैं, अगर हम तीसरी भाषा का विकल्प नहीं देते हैं, तो हमारे राज्य के छात्र पिछड़ जाएंगे, इसलिए छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने तीसरी भाषा का विकल्प प्रदान किया है. अन्य राज्यों में तीन भाषाएँ होंगी, और अगर हम वह विकल्प नहीं देते हैं, तो हमारे छात्र अन्य राज्यों की तुलना में पीछे रह जाएँगे, उन्होंने कहा. यह कहते हुए कि भाजपा मराठी के बारे में अडिग है और छात्रों के हितों के बारे में भी सोचती है, एडवोकेट आशीष शेलार ने कहा कि हम इस मामले पर किसी भी चर्चा के लिए तैयार हैं. अनावश्यक, अतार्किक और अवास्तविक चर्चा न करें, उन्होंने मीडिया, संपादकों, बुद्धिजीवियों, अभिभावकों और छात्रों से इस मुद्दे को समझने की अपील की. उन्होंने आज इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई राजनीतिक आलोचना भी नहीं की और पत्रकारों द्वारा पूछे गए राजनीतिक सवालों का जवाब देने से भी परहेज किया. उन्होंने छात्रों से यह समझने की अपील की कि यह विषय छात्रों के कल्याण के लिए कितना महत्वपूर्ण है और उन्होंने आज इस मामले के तथ्यों को उनके सामने रखने के लिए ही यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. साथ ही आज इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कोई राजनीतिक आलोचना नहीं की और पत्रकारों द्वारा पूछे गए राजनीतिक सवालों का जवाब देने से भी परहेज किया. आज हमने इस मुद्दे के तथ्यों को हमारे सामने रखने के लिए ही यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की है और सभी से अपील की है कि वे समझें कि यह मुद्दा छात्रों के कल्याण के लिए कितना महत्वपूर्ण है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हम सभी राजनीतिक आरोपों का जवाब बाद में देंगे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश महासचिव ए विक्रांत पाटिल, मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय, मीडिया विभाग प्रमुख नवनाथ बान, प्रवक्ता अतुल शाह और अन्य लोग शामिल थे.
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