मुंबई. आरटीआई के तहत सामाजिक कार्यकर्ता जीतेन्द्र घाडगे द्वारा मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए के तहत जांच शुरू करने की मंजूरी के लिए भेजे गए 374 मामलों को महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक लंबित रखा है. इससे विभिन्न विभागों में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की जांचें रुक गई हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 371 मंजूरी 120 दिन से अधिक समय से लंबित हैं, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि जानबूझकर भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए जांचों को रोका जा रहा है.

2018 में कानून में संशोधन कर यह अनिवार्य किया गया था कि ACB किसी भी जांच से पहले सक्षम प्राधिकरण से दो चरणों में मंजूरी प्राप्त करे. लेकिन अब विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रक्रिया का उपयोग केवल जांच रोकने के लिए हो रहा है. घाडगे ने कहा, “ACB भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनाई गई थी, लेकिन ये आंकड़े दिखाते हैं कि जवाबदेही की पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. यदि ACB भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती तो इसका मतलब जनता का सरकार पर से भरोसा उठ जाएगा.”

नगरविकास विभाग की हालत सबसे खराब

विभागवार आंकड़ों में सबसे खराब स्थिति नगर विकास विभाग की है जहां 88 मामलों की मंजूरी लंबित है, उसके बाद राजस्व विभाग में 60 मामले, और ग्रामीण विकास विभाग में 52 मामले अटके हुए हैं. इसके साथ ही ACB ने यह बताने से इनकार कर दिया है कि किन मामलों में मंजूरी ठुकराई गई, जिससे यह पता लगाना असंभव हो गया है कि कितने मामलों में सरकार ने जानबूझकर रोक लगाई है.

यंग व्हिसलब्लोअर्स फाउंडेशन से जुड़े वकील अधिवक्ता कार्तिक जानी ने कहा, “राजनीतिक वादों और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के बीच साफ disconnect दिखता है. यह आंकड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई में रुकावटों को उजागर करते हैं.” कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि मंजूरी की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और दुरुपयोग रोकने के लिए तत्काल न्यायिक व विधायी सुधार किए जाएं.

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