माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन रथ सप्तमी मनाई जाती है. यह तिथि सूर्य देव को समर्पित होती है. इसे माघ सप्तमी, रथ सप्तमी या अचल सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. इसे आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है. क्योंकि सूर्य देव की पूजा से रोगों से मुक्ति पाने में मदद मिलती है.
सनातन धर्म में माघ मास में आने वाली सप्तमी का विशेष महत्व होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्य देव का जन्म हुआ था. इसलिए रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव और उनके रथ में लगे 7 अश्वों की पूजा का विधान है. इस बार माघ सप्तमी 4 फरवरी 2025 यानी आज है. इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत रखकर भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना करता है. भगवान उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.
सुबह उठते ही करें ये काम
राथ सप्तमी पर सुबह उठते ही सबसे पहले पवित्र जल में स्नान करें. इसके बाद भगवान सूर्य का जप करें. व्रत का संकल्प ले रहे हैं तो सूर्य चालीसा का पाठ जरूर करें. ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए स्नान, दान, होम, पूजा आदि सत्कर्म हजार गुना अधिक फल देते हैं. क्योंकि सूर्य देव को आत्मा का कारक माना गया है, मकर संक्रांति के बाद ये वो दिन है जब सूर्य देव की पूजा अधिक फलित होती है. इससे सूर्य देव अपने भक्त की हर मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. व्यक्ति को जीवन सुख शांति और सफलता की प्राप्ति होती है. अगर आपके कोई काप अटक रहे हैं या फिर भाग्य साथ नहीं दे रहा है तो माघ सप्तमी पर सूर्यदेव की आराधना जरूर करें. इससे उनकी कृपा प्राप्त होगी और भाग्य जाग उठेगा.
सूर्य सप्तमी पर सूर्य पूजन का लाभ : :
यस्यां तिथौ रथं पूर्वं प्राप देवो दिवाकरः॥सा तिथिः कथिता विप्रैर्माघे या रथसप्तमी॥ 5.129 ॥
तस्यां दत्तं हुतं चेष्टं सर्वमेवाक्षयं मतम्॥ सर्वदारिद्र्यशमनं भास्करप्रीतये मतम्॥ 5.130 ॥
स्कंद पुराण में वर्णित उपरोक्त श्लोक के अनुसार भगवान सूर्य जिस तिथि को पहले-पहल रथ पर आरूढ़ हुए, उस दिन माघ मास की सप्तमी तिथि थी, इसलिए इसे रथ सप्तमी कहा जाता है. सूर्य सप्तमी पर दिया हुआ दान और यज्ञ आदि अनुष्ठान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है. ये सब प्रकार की दरिद्रता को दूर करने वाला और भगवान सूर्य की प्रसन्नता का साधक बताया गया है.
शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है. ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करता है. उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है. रथ सप्तमी पर अरुणोदय काल में स्नान करना चाहिए. सूर्योदय से पूर्व अरुणोदय काल (ब्रह्म मुहूर्त) में स्नान करने से मनुष्य स्वस्थ एवं सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहने का आशीर्वाद मिलता है.
रथ सप्तमी पूजा विधि :
रथ सप्तमी पर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के पश्चात सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की ओर मुख करके, नमस्कार मुद्रा में हाथ जोड़कर एक छोटे कलश से धीरे-धीरे भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हुये अर्घ्यदान किया जाता है. अर्घ्यदान के पश्चात्, शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित करना चाहिए तथा कपूर, धूप एवं लाल पुष्पों से सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए.
वहीं इस दिन सूर्य चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ होता है. बिना सूर्य चालीसा के पाठ करें. इस व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता.
सूर्य चालीसा पाठ
दोहा :
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग.
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग..
चौपाई :
जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर..
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर..
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन..
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते..
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि..
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर..
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी..
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित
होते..
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर..
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै..
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं..
चार पदारथ जन सो पावै।दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै..
नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह..
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई..
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते..
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन..
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है..
अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते..
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत..
भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित..
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे..
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा..
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर..
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन..
बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर..
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा..
विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी..
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे..
अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं..
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै..
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता..
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही..
मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके..
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा..
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों..
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी..
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन..
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै..
यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता..
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं..
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत,गावहिं जे नर नित्य.सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य..
(Disclaimer: ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)