मुंबई. एनसीपी शरद चंद्र पवार पार्टी के विधायक रोहित पवार इन दिनों राज्य की सत्तारूढ़ महायुति के खिलाफ चुन चुन कर मुद्दे ढूंढ रहे हैं और महायुति सरकार की नाक में दम कर रहे है. मंत्री माणिकराव कोकाटे एवं मेघना साकोरे-बोर्डिकर के बाद उन्होंने सत्तारूढ़ महायुति की प्रवक्ता रही वकील आरती साठे के जज बनने का मुद्दा उठाकर बीजेपी को बगलें झांकने को मजबूर कर दिया है.
भाजपा की पूर्व प्रवक्ता आरती साठे को बॉम्बे हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया है. विपक्ष इस नियुक्ति को लेकर काफी आक्रामक रहा है. रोहित पवार ने सोशल मीडिया के माध्यम से भाजपा पर निशाना साधा है. सार्वजनिक मंच से सत्तारूढ़ दल का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति की न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को उन्होंने लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया है. रोहित पवार ने कहा कि इसका भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. इसके अलावा उन्होंने यह सवाल भी उठाया है कि सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति न्यायाधीश बनने के योग्य है, क्या सीधे राजनीतिक व्यक्तियों को न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करना न्यायपालिका को एक राजनीतिक क्षेत्र बनाने का प्रयास नहीं है?
क्या यह संविधान की उपेक्षा ने का प्रयास नहीं है?
पवार ने कहा कि संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शक्ति का कोई केंद्रीकरण न हो और नियंत्रण और संतुलन हो. क्या एक राजनीतिक प्रवक्ता की न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत और वैकल्पिक रूप से संविधान को खत्म करने का प्रयास नहीं है? उन्होंने इस पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि जब उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर आसीन व्यक्ति की पृष्ठभूमि राजनीतिक हो और वह सत्तारूढ़ दल में पद का उपभोग कर चुका हो तो यह कौन सुनिश्चित करेगा कि न्यायिक प्रक्रिया राजनीति से प्रेरित न होगी? क्या एक राजनेता की नियुक्ति पूरी न्यायिक प्रक्रिया पर सवालिया निशान नहीं लगाएगी?
मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की मांग
रोहित ने कहा कि उक्त नियुक्त व्यक्ति की योग्यता पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन संबंधित व्यक्ति की नियुक्ति आम आदमी की इस भावना पर प्रहार करती है कि “आम नागरिकों को बिना किसी पूर्वाग्रह के न्याय दिया जाता है.” नतीजतन, न्यायाधीश के रूप में संबंधित राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. माननीय मुख्य न्यायाधीश साहब को भी इस संबंध में हमारा मार्गदर्शन करना चाहिए.

कांग्रेस ने भी बोला हमला
विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा है कि भाजपा प्रवक्ता रहे किसी व्यक्ति को किसी न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए. मैं सर्वोच्च न्यायालय से हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि इस नियुक्ति को रद्द किया जाए. जनता न्यायपालिका की ओर आशा भरी नज़रों से देख रही है. इसी तरह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि लोकतंत्र के चार स्तंभों में न्यायपालिका एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है. आम जनता का न्यायपालिका पर अभी भी विश्वास बना हुआ है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं को देखते हुए, न्यायपालिका पर विश्वास भी कम होता जा रहा है. अब, यदि सत्तारूढ़ भाजपा के पदाधिकारियों को सीधे न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जाता है, तो निश्चित रूप से इस बात पर संदेह हो सकता है कि वे निष्पक्ष रूप से न्याय करेंगे या नहीं. यह लोकतंत्र के लिए अत्यंत खतरनाक है. सपकाल ने आगे कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त की गईं एडवोकेट आरती साठे, भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र की प्रवक्ता के रूप में कार्य कर चुकी हैं. 2 फरवरी, 2023 को तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने प्रदेश प्रवक्ताओं की सूची जारी की, जिसमें साठे का नाम भी शामिल था. अगर किसी पार्टी के सक्रिय पदाधिकारी को न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि उनका फैसला निष्पक्ष होगा. ऐसी नियुक्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला घोंट रही हैं.यह बेहद गंभीर व चिंताजनक हैं.

बीजेपी ने किया पलटवार
कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के हमले के जवाब में बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने उन जजों के नाम की सूची जारी करके पलटवार किया है जो विपक्षी दलों के सत्तारूढ़ रहने के दौरान न्याय पालिका का हिस्सा बने थे. उपाध्ये ने साठे का बचाव करते हुए कहा कि भाजपा से इस्तीफा देने के डेढ़ साल बाद आरती साठे की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सिफारिश की गई थी. अब उनका भाजपा से कोई संबंध नहीं है. कांग्रेस पार्टी और रोहित पवार ने न्यायाधीशों के कॉलेजियम के फैसले के अनुसार की गई सिफारिश की आलोचना की है. इसी के साथ उपाध्ये ने न्या. बहरूल इस्लाम की नियुक्ति पर रोहित और कांग्रेस से जवाब मांगा. उपाध्ये ने कहा कि बहरुल इस्लाम अप्रैल 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए थे. इस दौरान उन्होंने असम विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. 1972 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बन गए थे. वे मार्च 1980 में सेवानिवृत्त हुए और फिर से राजनीति में सक्रिय हो गए. उनकी सेवानिवृत्ति के बाद, इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें दिसंबर 1980 में सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया. 1983 में, उन्होंने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषमुक्त करार दिया. इसकी वजह से हुई आलोचनाओं के बाद उन्होंने न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया और 1983 में कांग्रेस ने उन्हें फिर से राज्यसभा के लिए नामित किया गया था.

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