मुंबई. चतुर्मास शुरू हो गए हैं और इस उपलक्ष्य में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती मुंबई में हैं. इस दौरान उन्होंने गुरुवार को महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी विवाद को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने ने राज्य में मराठी के समर्थन में चल रहे आंदोलन का केंद्र बिंदु रहे ठाकरे परिवार को लेकर कहा कि ठाकरे महाराष्ट्र के बाहर से आए थे. वे मगध से आए थे. उस समय वे मराठी नहीं थे और उन्हें मराठी नहीं आती थी. महाराष्ट्र ने उन्हें स्वीकार किया. मगध से आए ठाकरे परिवार को एक बड़ा मराठी वक्ता बनाया गया था और वे अब मराठी के लिए लड़ रहे हैं.
शंकराचार्य ने आगे कहा कि आज मराठी पर जोर देने वालों का इतिहास सबके सामने है. उनके अपने पूर्वजों ने उनकी जीवनी, उनके परिवार का इतिहास लिखा है. इसलिए यदि कोई मराठी भाषा से प्यार करता है, तो किसी के लिए भी इस पर ऐतराज जताने को कोई वजह नहीं है. यदि कोई मराठी के प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है, तो भी आपत्ति व्यक्त करने का कोई कारण नहीं है. लेकिन यदि कोई मराठी भाषा के लिए दूसरों को थप्पड़ मारना शुरू कर दे तो क्या भाषा को यश मिलेगा? ऐसा सवाल पूछते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने गुरुवार को कहा कि यदि आपको लगता है कि सिर्फ महाराष्ट्र में रहने वाले लोग ही मराठी भाषा पसंद करते हैं तो ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि पूरा देश मराठी पसंद करता है.
… तो मैं पूरे देश में मराठी का प्रसार करूंगा
शंकराचार्य ने कहा कि ठाकरे भाइयों के मराठी प्रेम पर हमें कोई आपत्ति नहीं है. अगर आपको मराठी पसंद है, तो यह अच्छी बात है. हर किसी को अपनी संस्कृति, परंपरा, भाषा के लिए प्यार होना चाहिए. हम यहां दो महीने रहेंगे. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे से मैं अपील करता हूं कि मुझे मराठी सिखाएं. आप मुझे मराठी सिखाओ, मैं पूरे देश में मराठी सिखाऊंगा. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि दो महीने बाद जब मैं यहां से जाऊंगा तो उनसे मराठी में बात करूंगा. उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र के लोगों ने आपके पूर्वजों को प्यार दिया. आप उस प्यार को आगे क्यों नहीं बढ़ाते? लोगों को इतना प्यार दें कि वे अपनी भाषा भूल जाएं और मराठी भाषा को अपना लें.
जबरदस्ती कैसे कर सकते हैं?
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि आज मराठी भाषी लोग पूरे देश में काम कर रहे हैं. देश के बाहर भी कई स्थानों पर मराठी पढ़ाई जाती है. हर कोई एक से अधिक भाषा नहीं बोल सकता है. हर कोई बहुभाषी नहीं होगा. देश में ऐसे अधिक लोग हैं जो केवल एक ही भाषा बोलते हैं. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पूछा कि आप जबरदस्ती कैसे कर सकते हैं कि सभी को मराठी भाषा आनी चाहिए या सभी को मराठी सीखनी चाहिए?

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