बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा गुरुवार (2 अक्टूबर 2026) को मनाया जाएगा. इस बार दशहरा बहुत ही खास माना जा रहा है क्योंकि इस दिन सुकर्मा योग और रवि योग का संयोग बन रहा है तो वहीं गुरु बुध के संयोग से केंद्र योग का भी निर्माण हो रहा है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 2 अक्टूबर के दिन सुबह से लेकर रात 11 बजकर 29 मिनट तक सुकर्मा योग बनेगा. इसके अलावा इसी दिन धृति योग भी प्रारंभ होने वाला है तो वहीं इस पूरे दिन रवि योग विद्यमान रहेगा. इसके साथ ही श्रवण नक्षत्र सुबह 9 बजकर 13 मिनट से लेकर पूरी रात तक रहेगा, जो दिन को और भी विशेष बना रहा है. इतना ही नहीं 2 अक्टूबर को 2 बजकर 27 मिनट पर बुध और गुरु एक दूसरे से 90 डिग्री पर स्थित होंगे. इससे केंद्र दृष्टि योग का निर्माण होगा. गुरु-बुध का यह केंद्र योग मेष कर्क और धनु राशि के जातकों के लिए सुनहरे अवसर लेकर आ रहा है. ज्योतिष मान्यता है कि यह योग बुद्धि, भाग्य और आत्मविश्वास को मजबूती देता है.
दशहरा का उत्सव आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है, जो शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन पड़ती है. इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था. मान्यता है कि रावण के दस सर थे. इसलिए रावण को दशानन कहते थे और दशहरा को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीराम की पूजा करने से हर प्रकार की समस्याओं का अंत हो जाता है. एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन माता दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था. इसलिए के दिन नवरात्रि का समापन भी होता है. इसके अलावा दशहरा के दिन माता अपराजिता का भी पूजन किया जाता है.
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने संसार को रावण के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया था. इसके साथ ही देवी लक्ष्मी ने माता सीता का रूप लिया था. लंकापति रावण ने छलपूर्वक माता सीता का हरण कर लिया था. रावण ने इसके पहले भी अनगिनत कुकर्म किए थे, जिनके लिए उसे दंड मिलना काफी आवश्यक था. इसलिए भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था. जिस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था, उस दिन आश्विन माह की दशमी तिथि थी. इसके साथ ही माता दुर्गा ने भी आश्विन माह की दशमी तिथि पर महिषासुर का वध किया था. इस कारण दशमी का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना जाता है.
दशहरा पर पूजन का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, 2025 में दशमी तिथि 1 अक्टूबर 2025 को शाम 7:01 बजे शुरू होगी और 2 अक्टूबर 2025 को शाम 7:10 बजे समाप्त होगी. पूजा के लिए सबसे शुभ समय विजय मुहूर्त है, जो 2 अक्टूबर को दोपहर 2:09 बजे से 2:56 बजे तक रहेगा.
अपराह्न पूजा समय दोपहर 1:21 बजे से 3:44 बजे तक रहेगा. रावण दहन का समय सांध्यकाल में लगभग शाम 5:00 बजे से 7:00 बजे तक होता है, जो स्थानीय आयोजनों पर निर्भर करता है. इस दिन श्रवण नक्षत्र सुबह 9:13 बजे से शुरू होगा, जो पूजा को और अधिक शुभ बनाता है. विजय मुहूर्त में पूजा करने से कार्यों में सफलता और बाधाओं का नाश होता है.
दशहरा पूजा के मंत्र
पूजा के दौरान मंत्रों का जप करने से मन शांत होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. इस दौरान आप इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं.
नीलांबुजश्यामलकोमलांग सितासमरोपितवंशभागम।
पाणौ महासायकचरुचापं नमामि रमं रघुवंशनाथम्॥
विजय के लिए इस मंत्र का जाप करें-
श्रीराम जय राम जय जय राम।
अपराजिता देवी की पूजा के लिए मंत्र है-
ॐ अपराजितायै नमः, जो बाधाओं को दूर करता है.
प्रत्येक मंत्र को कम से कम 11, 21 या 108 बार जपें. माला का उपयोग करें और शांत मन से जप करें. ये मंत्र पूजा को और प्रभावी बनाते हैं.
दशहरा पर विशेष उपाय
दशहरा पर कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है. शमी पत्र को पूजा के बाद तिजोरी या पर्स में रखें, इससे धन लाभ होता है. अपराजिता देवी की पूजा से नौकरी या व्यापार में सफलता मिलती है.
दशहरा और आयुध पूजा का महत्व
आयुध पूजा का संबंध रामायण, देवी भागवत पुराण और महाभारत से है. रामायण में भगवान राम ने रावण पर विजय के लिए अपने हथियारों की पूजा की थी. देवी भागवत पुराण में माता दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के बाद उनके दिव्य हथियारों की पूजा की थी. महाभारत में पांडवों ने अपने हथियार शमी वृक्ष में छिपाए थे, जिन्हें दशहरे के दिन निकाला गया. इस प्रकार, आयुध पूजा रोजमर्रा के औजारों, वाहनों और हथियारों को देवतुल्य मानकर उनकी पूजा करने का पर्व है.
कम होता है शनि मंगल का दुष्प्रभाव
आयुध पूजा शनि और मंगल ग्रहों को प्रसन्न करती है, जो मेहनत, साहस और अनुशासन से जुड़े हैं. मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से कार्यों में रुकावटें दूर होती हैं, आर्थिक समृद्धि बढ़ती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
दशहरा 2025 की पूजा विधि
आयुध पूजा को विधिपूर्वक करना आवश्यक है ताकि भगवान राम और माता अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त हो सके. सुबह स्नान करने के बाद लाल या पीले रंग के साफ कपड़े पहनें. पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और लाल कपड़े पर माता अपराजिता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. पूजा के लिए गंगाजल, नीले और सफेद फूल तैयार रखें. शस्त्र पूजा के लिए धनुष-बाण, तलवार, रिवॉल्वर या वाहनों जैसे औजारों को साफ कर पूजा स्थल पर रखें. इन पर रोली, फूल और अक्षत चढ़ाएं.
आयुध पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, दशहरा और आयुध पूजा के लिए विजय मुहूर्त सबसे शुभ माना जाता है. 2 अक्टूबर, 2025 को आयुध पूजा का मुहूर्त दोपहर 2:09 बजे से 2:56 बजे तक रहेगा. इसके अतिरिक्त, अभिजित मुहूर्त सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक होगा, जो पूजा और शुभ कार्यों के लिए आदर्श है. मान्यता है कि इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से माता अपराजिता की कृपा प्राप्त होती है, जो युद्ध और कार्यों में विजय दिलाती है.