मुंबई. 26/11 आतंकी हमले के जख्म गुरुवार को फिर से हरे हो गए. कसाब एंड कंपनी द्वारा मुंबई पर हमले के जरिए पूरी दुनिया को दहलाने वाले आतंकी हमले की साजिश में शामिल तहव्वुर राणा को भारतीय जांच एजेंसियां अमेरिका से प्रत्यर्पित करके हिंदुस्तान ले आईं. पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक राणा को एक विशेष विमान से अमेरिका के लॉस एंजिल्स से दिल्ली लाया गया. एनआईए और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) की टीमों ने उसे इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरते ही हिरासत में लिया. बाद में उसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया. जहां एनआईए की टीम ने 14 दिनों की हिरासत की मांग की.
राणा पर मुंबई हमलों में डेविड कोलमैन हेडली के साथ साजिश रचने का आरोप है, जिसमें 166 लोग मारे गए थे. राणा ने 1990 के दशक के अंत में कनाडा में प्रवास करने से पहले पाकिस्तानी सेना की मेडिकल कोर में काम किया था और अपनी आव्रजन कंसल्टेंसी फर्म शुरू की थी. बाद में, वह अमेरिका चला गया और शिकागो में एक कार्यालय स्थापित किया. राणा ने 13 नवंबर से 21 नवंबर 2008 के बीच अपनी पत्नी समराज राणा अख्तर के साथ उत्तर प्रदेश के हापुड़, आगरा, दिल्ली, केरल के कोच्चि, गुजरात के अहमदाबाद और महाराष्ट्र के मुंबई का दौरा किया था. अपनी फर्म के जरिए राणा ने हेडली को मुंबई में टोही मिशन चलाने के लिए संरक्षण प्रदान किया ताकि कसाब और उसके 9 अन्य साथी मुंबई में बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम दे सकें.

ट्रंप ने निभाया प्रत्यर्पण का वादा
26/11 आतंकी हमले में अमेरिका और ब्रिटिश नागरिकों की भी मौत हुई थी. इसलिए अमेरिकी जांच एजेंसियों ने हेडली व राणा को गिरफ्तार किया था. भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत शुरू की गई कार्यवाही के बाद उसे अमेरिका में न्यायिक हिरासत में रखा गया था. राणा को अमेरिका में लॉस एंजिलिस के मेट्रोपोलिटन डिटेंशन सेंटर’ में रखा गया था. कैलिफोर्निया के मध्य जिला स्थित जिला न्यायालय ने 16 मई, 2023 को राणा के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था. राणा ने प्रत्यर्पण रोकने के लिए सभी कानूनी रास्ते आजमाए. इसके बाद राणा ने नौवीं सर्किट अपील अदालत में कई मुकदमे दायर किए. लेकिन सभी खारिज कर दिए गए. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 14 फरवरी को मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि हम एक बेहद हिंसक व्यक्ति को तुरंत भारत वापस भेज रहे हैं ताकि उसे भारत में न्याय की जद में लाया जा सके. इसके बाद भी राणा ने हार नहीं मानी. इसके बाद उसने समीक्षा रिट, दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं और अमेरिकी उच्चतम न्यायालय में एक आपातकालीन आवेदन दायर किया, लेकिन ये भी अस्वीकार कर दिए गए.

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