मुंबई. बलात्कार एवं महिलाओं के यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामले चिंता का सबब बनने लगे हैं. महिलाएं खासकर मासूम बच्चियां अपनों के बीच भी सुरक्षित नहीं रह पा रही हैं. पिता, भाई, चाचा, मामा, दादा, पड़ोसी, स्कूल में शिक्षक या सहकर्मी में से कौन बलात्कारी निकल जाएगा, आज इसका कोई भरोसा नहीं रह गया है. लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच्चाई है कि महिलाएं कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रही हैं. रेप के कई मामले टेक्निकल होते हैं, जिनमे कथित प्यार अथवा किसी लालच की वजह से महिलाएं संबंधों की मंजूरी देती हैं. लेकिन बाद में प्रेम संबंध टूटने या फिर अपेक्षा पूरी नहीं होने पर महिलाएं रेप का मामला दर्ज करवा देती हैं. इससे वास्तविक पीड़िताओं को भी लोग संदेह की नजर से देखने लगे हैं. सहमति से संबंध बनाने के बाद रेप का मामला दर्ज कराने वाली ऐसी ही एक पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट में जबरदस्त फटकार सुननी पड़ी.
महाराष्ट्र के एक व्यक्ति के खिलाफ एक विवाहिता ने जुलाई 2023 में बलात्कार की एफआईआर दर्ज कराई थी. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि सहमति से बने रिश्ते में खटास आना या प्रेमी जोड़े के बीच दूरी बन जाना आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने का आधार नहीं हो सकता. पीठ ने कहा कि ऐसे मामले न सिर्फ अदालतों पर बोझ डालते हैं, बल्कि आरोपी की बदनामी का कारण भी बनते हैं. कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा नहीं लगता कि लड़के ने सिर्फ शादी का वादा किया और महिला की मर्जी के बगैर उससे शारीरिक संबंध बना लिए, जबकि वह पहले से किसी और के साथ विवाहित थी.

सुप्रीम कोर्ट ने उक्त आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कहा कि व्यक्ति पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने शादी का झूठा वादा कर एक महिला से बलात्कार किया था. लेकिन पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को सही नहीं माना जा सकता है. क्योंकि रिकॉर्ड से ऐसा नहीं लगता है कि शिकायतकर्ता के साथ संबंध उसकी इच्छा के विरुद्ध या सिर्फ शादी करने के वादा कर के बनाया गया था. बेंच ने कहा, ‘हमारे विचार से, यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें शुरूआत में शादी करने का झूठा वादा किया गया हो. बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार प्रावधानों के दुरुपयोग के खिलाफ आगाह किया है और यह कहा है कि विवाह के वादे के हर उल्लंघन को झूठा वादा मानकर बलात्कार के अपराध में व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाना अविवेकपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की ओर से दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के जून 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने सातारा में बलात्कार सहित कथित अपराधों के लिए उसके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की उसकी याचिका खारिज कर दी थी.

कोर्ट ने कहा कि यह मामला महिला की शिकायत पर दर्ज किया गया है, जिसने आरोप लगाया है कि जून 2022 से जुलाई 2023 के दौरान आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए. हालांकि, आरोपी ने आरोपों से इनकार किया था. बेंच ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद आरोपी ने अग्रिम जमानत के लिए निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसे अगस्त 2023 में मंजूर कर लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी और शिकायतकर्ता जून 2022 से एक दूसरे से परिचित थे और उसने खुद स्वीकार किया कि वे अक्सर बातचीत करते थे और उन्हें प्रेम हो गया. पीठ ने कहा, ‘यह विश्वास करने लायक नहीं है कि शिकायतकर्ता ने विवाह का वादा कर अपीलकर्ता (आरोपी) के साथ शारीरिक संबंध बनाए, जबकि महिला पहले से ही किसी और से विवाहित थी.’

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. बेंच ने कहा, ‘यह ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता की आयु मात्र 25 वर्ष है, न्याय के हित में यह होगा कि उसे आसन्न मुकदमे का सामना न करना पड़े और इसलिए कार्यवाही रद्द की जाती है.’

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