मुंबई. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को अपना 8वां बजट पेश किया जिसके पक्ष विपक्ष में विभिन्न स्तरों पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने बजट की आलोचना करते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला. सोशल नेटवर्किंग साइट एक्स पर साझा की गई पोस्ट में उन्होंने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर आर्थिक मुद्दे पर भटक जाने का आरोप लगाते हुए जोरदार हमला बोला है.
सावंत ने पोस्ट में लिखा है कि बीते 10 वर्षों में केंद्र सरकार आर्थिक नीतियां के मामले में पूरी तरह से भटक चुकी है. इस बजट से यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस की आर्थिक नीतियां ही इससे कहीं ज्यादा अच्छी थीं.
नुकसान ही नुकसान
सावंत ने कहा कि पिछले दस वर्षों में सरकार का ध्यान आपूर्ति बढ़ाने पर रहा है. कॉर्पोरेट करों में डेढ़ लाख करोड़ रुपए की कमी की गई. लेकिन कॉर्पोरेट लाभ और नौकरियों में वृद्धि नहीं हुई. बैंकों द्वारा निगमित ऋणों को माफ किए जाने के बाद भी न ही निजी निवेश में वृद्धि हुई और न ही निर्यात में वृद्धि हुई है. जबकि इस अवधि के दौरान चालू खाता घाटा बढ़ा और व्यापार घाटा कम नहीं हुआ.

एफडीई भी घट गई
सावंत ने कहा कि यू.पी.ए. सरकार के दौरान जो एफ.डी.आई. सकल सकल राजस्व सृजन का 3.6 प्रतिशत थी, वह अब घटकर 0.8 प्रतिशत रह गई है. विदेशी संस्थान शेयर बाजार से भाग रहे हैं क्योंकि कॉर्पोरेट नफा नहीं कमा पा रहे हैं. जबकि पिछले बीस वर्षों में लोगों की क्रय शक्ति अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. हमारी राय है कि इसके लिए मांग बढ़ाने और लोगों के हाथों में पैसा देने की नीति बनाई जानी चाहिए. इसने अब राजकोषीय कर में एक छोटी सी छूट की पेशकश करके अपनी नीतिगत गलती को स्वीकार किया है. लेकिन यह नहीं बताया कि इसके लिए इसके लिए 1,26,000 करोड़ रुपए कहां से आएंगे?
जन हितकारी योजनाओं में कटौती
सावंत ने आशंका जताई कि इस राजकोषीय गिरावट को लक्षित करते हुए मनरेगा, खाद्य सुरक्षा और मातृ वंदना जैसी असंख्य योजनाओं में कटौती की जाएगी. ऐसा स्पष्ट रूप से प्रतीत हो रहा है. फिर बुनियादी ढांचे और विकास कार्यों का क्या होगा? इसका कोई जवाब नहीं है. लगातार घट रहे शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च की इस बजट में चर्चा नहीं की गई है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी, इसका कोई जिक्र नहीं है. कोरोना के बाद विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार आधा हो गया था और लगभग 56 लाख लोग कृषि क्षेत्र में शामिल हो गए थे. मेक इन इंडिया की पोल खुल गई है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का 18 प्रतिशत का योगदान एक छोटा ही है.

सब परेशान हैं
सावंत के अनुसार, पूरा देश परेशान है. लगभग 55 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं. ग्रामीण मांग को बढ़ाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और इसके लिए कानूनी समर्थन की आवश्यकता है. जबकि किसानों के कृषि उपकरणों के साथ-साथ उर्वरकों पर भारी जीएसटी का बोझ है. इस अवधि के दौरान खेतिहर मजदूरों की आय में गिरावट आई है. इसलिए यहां मांग बढ़ना संभव नहीं है. मुद्रास्फीति के अनुरूप किसान सम्मान निधि में वृद्धि की जरूरत थी. जो कि नहीं कि गई. इसके विपरीत महंगाई पूरी रफ्तार से बढ़ रही है. मुद्रास्फीति सूचकांक 5.2%, खाद्य मुद्रास्फीति सूचकांक 8.2% पर पहुंच गया है और सब्जियों की कीमतों में इस वर्ष 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इस वजह से कुल मिलाकर भोजन की थाली की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version